डिजिटल रेप क्या होता है? कैसे पहचाने डिजिटल रेप को?

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 डिजिटल रेप एक तरह का संगीन अपराध है जिसमें कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से जबरदस्ती कर उसके प्राइवेट अंगों में अपनी उंगली, पैर या हाथ का अँगूठा अगर डालता है तो इसे डिजिटल रेप अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। इस जघन्य अपराध के लिए व्यक्ति को  5 से 10 साल की सजा हो सकती है। 

डिजिटल रेप आपराधिक कानून जगत का नया शब्द है, इस शब्द का पहला प्रयोग 2013 में किया गया था। निर्भया दुष्कर्म  के बाद ही इस शब्द का प्रयोग व इसकी अवधारणा को कानून में जगह दी गई ताकि ऐसे अपराध करने वाले कानून की पहुंच से बच न सकें।


डिजिटल रेप का प्रावधान क्या है व इसमें कितनी सजा होती है?


What is digital rape and what are the rules and laws


डिजिटल रेप में जब कोई व्यक्ति  किसी अन्य व्यक्ति के प्राइवेट अंगों या जननांगों में अपनी उंगली या उंगलियां व कोई अन्य भौतिक वस्तु जबरदस्ती डालता है तो यह जघन्य अपराध डिजिटल रेप माना जाता है। 

हालांकि सेक्सुअल अपराधों में के सारे अपराध ऐसे भी हैं जो ऑनलाइन फोटोज, वीडियोस, या ऑनलाइन कॉल्स के माध्यम से होते हैं, किन्तु डिजिटल रेप शब्द में डिजिटल शब्द का अर्थ टेक्नोलॉजी वाले डीजिटल शब्द से न होकर यह इकाई या डिजिट (Digit) से है। चूंकि इंग्लिश के Digit शाद का अर्थ उंगली, पैर का ,अंगूठा अंगूठा, होता है इसलिए ऐसे अपराधों की Digital Rape कहा जाता है। 

वर्ष 2013 के पहले डिजिटल रेप जैसी अवधारणा नहीं हुआ करती थी। उल्लेखनीय है की उस वक़्त मनमोहन सिंह यानी UPA या कांग्रेस की सरकार केंद्र में थी। (NDA के बारे में  और जानने के लिए यहां पढ़ें)

उस वक़्त 2013 में भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code) के सेक्शन 376 में जो की रेप से अपराधों की सजा निर्धारित करता है उसमें डिजिटल रेप की सजा निर्धारित नहीं था।

2012 तक के समयकाल तक आज के 'डिजिटल रेप" जैसे अपराधो को मोलेस्टेशन यानी स्त्री या व्यक्ति गरिमा से छेड़छाड़ के अन्तरत देह जाता था, लेकिन निर्भया दुष्कर्म के बाद इसमें संशोधन किए गए और इसे एक अन्य तरीके का रेप स्वीकार किया गया जो की छेडछाड़ से ज्यादा जघन्य अपराध है। 

इस प्रावधान के अंदर POCSO एक्ट के तहत व्यक्ति को 5 साल की सजा हो सकती है, लेकिन अगर कोई अपराधी IPC धारा 375 के अन्तर्गत अपराधी सिद्ध होता है तो उसे 10 साल या ताउम्र कैद या मृत्यु की सजा का दंड दिया जा सकता है।   

इंडिया टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार हालांकि डिजिटल रेप एक जेंडर-न्यूट्रल शब्द है लेकिन भारित कानून इसे पुरुष अपराधी और महिला पीडिता के रूप में ही देखती है। रेप के पीड़ितों को दो तरह से विभाजित किया गया है- एक मेजर(Major) दूसरा माइनर(Minor)। 

मेजर अपराध के दुष्कर्मियों को IPC की सेक्शन 375 के अंतर्गत उनकी सुनवाई व दंड का निर्धारण किया जाता है जबकि माइनर दुष्कर्मियों को POCSO व सेक्शन 375 दोनो के तहत सजा सुए जाती है। 

(लिंक- जानिए एक बालिग और नाबालिग के अपराध के मामलों में भारतीय कानून में क्या है प्रावधान) 


 

 

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