बिहारी के 24 आसान दोहों का संकलन बिहारी रत्नाकर से

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 बिहारी रीतिकाल के एक बहुत ही मशहूर और प्रतिभा सम्पन्न कवि रहे हैं। रीतिकाल के अंतर्गत इनको रीतिसिद्ध काव्यधारा में रखा जाता है। रीतिसिद्ध काव्यधारा में ऐसे कवि आते हैं जो कि रीतिकाल की अमूमन शैली जिसमें की लक्षण ग्रंथ का निर्माण और दूसरों के उदाहरणों द्वारा उसके लक्षणों/काव्य-सूत्रों  को सत्यापित करने की परम्परा का निर्वहन (निर्वाह, पालन) नहीं करते। बल्कि इससे उलट वे लक्षण ग्रंथ लिखते हैं लेकिन उदाहरण ये कविता में अपनी रचना के यानी स्वरचित उदाहरण ही देते हैं।

यह दोहे दिल्ली यूनिवर्सिटी के मास्टर ऑफ आर्ट्स, हिंदी के पाठ्यक्रम II सेमेस्टर में लगे हुए हैं। हमने यहां इस आर्टिकल में पूरी 'बिहारी रत्नाकर सम्पादन जग्गनाथ रत्नाकर' के महत्वपूर्ण दोहों का ही संकलन किया है। अगर आप चाहते हैं की हम पूरी जग्गनाथ रत्नाकर द्वारा संपादित बिहारी रत्नाकर ग्रन्थ के कुल महत्वपूर्ण दोहों को जो उक्त कोर्स के पाठ्यक्रम में लगे हैं, सभी को यहां ऑनलाइन अपलोड कर दे, तो हमें कमेंट कर के बताएँ। 

(बिहारी के बारे में जानने के लिए यहां से पढ़ें)

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दिल्ली यूनिवर्सिटी में लगे पाठ्यक्रम से बिहारी के कुछ प्रसिद्ध दोहे


1. तौं पर वारौं उरबसी, सुनि, राधिके सुजान।
      तू मोहन कैं उर बसी, ह्वै उरबसी समान।।25।।

2.   कहत ,नटत, रीझत, खीझत, मिलत, खिलत, लजिआत
       भरे भौन में करत हैं, नैननु ही सो बात।।33।।

3.   नहीं पराग नहीं मधुर मधु, नहीं विकास इहि काल
       अली कली ही सौं बन्धयौ आगे कौन हवाल।।38।।

4.   देह दुल्हनिया की बढ़ै, ज्यों-ज्यों जोबन जोति।
        त्यौं-त्यौं लखि सौत्यें सबैं बदन मलित दुति होति।।

5.   खेलन सिखए, अलि, भलैं चतुर अहेरी मार
       कानन-चारि नैन-मृग, नागर नरनु सिकार।।45।।

     
Easy to learn Dohas of Bihari, a poet in Ritikal



6.   बर जीते सर मैन के, ऐसे देखे मैं न
         हरिनी के नैनानु तैं, हरि, नीके ए नैन।।67।।

7.    कब को टेरत दीन रट, होत न स्याम सहाइ।
         तुमहुँ लागी जगत गुरु, जग-नाइक जग बाइ।।71।।

8.    पत्रा ही तिथि पाइए, वा घर के चहुँ पास।  
         नित्यप्रति पुन्योंई रहे, आनन-ओप उजास।।72।।

9.   कंज-नयनि मंजनु किए बैठी ब्यौरति बार।
        कच-अंगुरी-बिच दीठि दै, चितवति नंदकुमार।।78।।

10.  कहति न देवर की कुबति कुल-तिय-कलह डराति।
         पंजर-गत मंजार-ढिग सुख ज्यों सूकति जाति।।91।।

11.   कोऊ कोरिक संग्रहौ, कोऊ लाख हजार।
          मो सम्पति जदुपति सदा बिपति-बिदारनहार।।91।।

12.   तंत्री नाद,कबित्त-रस, सरग राग, रति रंग।
          अनबूड़े बूड़े, टरे जे बूड़े सब अंग।।94।।

13.     हेरि हिंडोरे गगन तैं, परी परी सी टूटि।
           धरी धाइ पिय बीच ही, करि खरी रस लूटि।।99।।

14.    या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोइ।
           ज्यों-ज्यों बूड़ै स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जुल होइ।।121।।

15.    धाम धरिक निवारियै, कलित-ललित-अलि-पुंज।
           जमुना-तीर तमाल-तरु-मिलित, मालती-पुंज।।127।।
                  
(यह दोहा सबसे ज्यादा संकेतित भाषा में कहा गया है। यह एक पथिक/प्रेमी और एक स्त्री/प्रेमिका के बीच अभिधात्मक/व्यंजनात्मक संवाद है।)

16.   जपमाला, छापै, तिलक सरैं न एकौ कामु।
          मन-काचै नाचै वृथा, सांचे राँचे राम।।146।।   

17.   पूस-मास सुनि सकिन पै साईं चलत सवारु।
          गाहे कर बीन प्रबीन तिय राग्यो रागु मलारू।।146।।

18.   घर-घर डोलत दीन है, जनु-जनु जांचत जाइ।
          दियैं लोभ चसमा चखनु, लघु पुनि बड़ौ लखाई।।151।।

19.  बड़े न हुजै गुननु बिनु, बिरद बड़ाई पाइ।
           कहत धतूरे सौं कनक, गहनौं गढ्यौ न जाइ।।191।।

20.  तजि तीरथ, हरि-राधिका-तन-दुति करि अनुरागि।
        जिंहि ब्रज-केलि-निकुंज-मग पग का होत परागु।।201।।

21.  कन-दैबौ सौप्यौं ससुर, बहू थुरहथी जानि।
        रूप-रहचटैं लगि लग्यो माँगन, सबु जगु आनि।।295।।

22.   स्वारथु, सुकृतु न, श्रय वृथा, देखि बिहंग बिचारि।
          बाक, पाराएँ पानि परि तूं पच्छिनु न मारि।।300।।
        (राजा जयशाह को केंद्रित- नीति परक दोहा)

23.    समै-समै सुन्दर सबै, रूप  कुरूप न कोई।
            मन की रुचि जेती जितै, तितैं तेती रुचि होइ।।432।।

24.   जद्यपि सुंदर, सुघर, पुनि सगुनौ दीपक देह।
          तऊ प्रकास करै तितौ, भरियै जितै सनेह।।658।।


बिहारी कौन हैं?


बिहारी रीतिकाल के एक सिद्ध हस्ताक्षर हैं। बिहारी को मुखयतः रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवियों की श्रेणी में रखा जाता है। इनका जन्म 1595 में हुआ था  और इनकी मृत्यु 1663 ई० में हुई। बिहारी का पोर नाम बिहारीलाल है, इनका जन्म गोविंदपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम केशवदास था। बिहारी ने अपना गुरु नरहरीदास  को बताया है।

बिहारी निम्बार्क सम्प्रदाय से दीक्षित थे और इनके आश्रयदाता का नाम महाराज जयसिंह था। बिहारी के बारे में यह दोहा अत्यंत ही प्रसिद्ध है- "सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर, देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर।" अर्थात बिहारी कम शब्दो में ज्यादा कहने का सामर्थ्य रखते थे इसलिए बिहारी को "गागर में सागर भरने वाला कवि" भी कहा जाता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का बिहारी के बारे में कहना है कि- "शृंगार रस के ग्रन्थों में जितनी ख्याति  और जितना मां 'बिहारी सतसई' का हुआ उतना और किसी का नहीं। इसका एक-एक दोहा हिंदी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है। आचार्य रामचंद्र  शुक्ल ने बिहारी को रसवादी कवि मन है लेकिन डॉ० नगेन्द्र ने बिहारी को ध्वनिवादी स्वीकार किया। वहीं अन्य में से श्री राधाचरण गोस्वामी ने बिहारी को 'पीयूषवर्षी मेघ' की उपाधि दी।

बिहारी की रचनाओं की जानकारी


बिहारी की एकमात्र रचना 'बिहारी सतसई' दोहा छंद में रचित  है। बिहारी सतसई की भाषा को परिनिष्ठित साहित्यिक भाषा माना जाता है। डॉ० जॉर्ज ग्रियर्सन ने 'सतसई' ग्रन्थ की प्रशंसा में लिखा है की-
 "यूरोप में "बिहारी सतसई" के समकक्ष कोई रचना नहीं है।"
 बिहारी सतसई ग्रन्थ में कुल मिलाकर 719 दोहे हैं। किन्तु जगन्नाथ रत्नाकर ने(जिन्होंने बिहारी सतसई टीका का संपादन किया है) इसकी संख्या 713 ही माना है।

बिहारी के सतसई ग्रन्थ पर कुल 50 से अधिक टिकाएं मिलती है। बिहारीलाल के पुत्र कृष्णलाल ने बिहारी सतसई की सर्वप्रथम टीका सवैया छंद में लिखी है।

बिहारी के ग्रन्थ बिहारी सतसई के कुछ प्रमुख टीकाकार:

रचनाकार टीकाकार विषयवस्तु
कृष्णलाल कवि          कृष्णलाल की टीका  हर दोहे का सवैया छंद में विश्लेषण
लल्लू लाल                  लालचंद्रिका                       
सुरति मिश्र                अमर चंद्रिका  प्रणयन दोहे में
प्रभुदयाल पांडेय         प्रभुदयाल की टिका(1896ई०)  आधुनिक खड़ी बोली में
अंबिकदत्त व्यास        बिहारी बिहार   दोहों के भावों का रोल छंद में परिवर्तन
पद्मसिंह शर्मा              संजीवनी भाष्य  तुलनात्मक पद्धति के जरिए अर्थ
आनंदीलाल शर्मा          फिरंगे सतसई  फ़ारसी भाषा में
जगन्नाथदास रत्नाकर     बिहारी रत्नाकर(1921ई०)  हिंदी खड़ी बोली में सर्वोत्तम रचना


बिहारी सतसई को अनुदित करने वालों के नाम, रचना का नाम, भाषा क्रमश:    -
रचनाकार रचना भाषा
पंडित परमानंद          शृंगार सप्तशती संस्कृत में
मुंशी देवी प्रसाद प्रीतम गुलदस्त बिहारी                   उर्दू में




ऐसा माना जाता है कि बिहारी पर कई कवियों और उनकी रचनाओ का वृहद प्रभाव पड़ा था। वे रचनाकार और उनकी रचना आगे दी जा रही हैं- अमरुक कवि की रचना अमरुक शतक(संस्कृत में),    हाल कवि (या शालिवाहन कवि) की रचना गाथा-सप्तशती(प्राकृत में), और  गोवर्धनाचार्य की रचना आर्या-सप्तशती(संस्कृत में)।

बिहारी के बारे में प्रमुख आलोचकों के कथन:


(आचार्य बलदेव उपाध्याय)
*संस्कृत के आचार्य बलदेव उपाध्याय ने कहा है कि "हाल कवि 'गाथा' के, गोवर्धन 'आर्या' के और बिहारी 'दोहा' के बादशाह हैं।"


(आचार्य रामचन्द्र शुक्ल)
*यही प्रबन्ध काव्य एक विस्तृत वनस्थी है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है।

*जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति केसआठ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा। यह क्षमता बिहारी में पूर्ण रूप से विद्यमान थी।

*बिहारी की रास व्यंजना का पूर्ण वैभव उनके अनुभवों के विधान में दिखाई पड़ता है।

*भावों का बहुत उत्कृष्ट और उदात्त स्वरूप बिहारी में नहीं मिलता। कविता उनकी शृंगारी है ,पर प्रेम की उच्च भूमि पर नहीं पहुँचती नीचे ही रह जाती है।

* बिहार की कृति का मूल्य जो बहुत अधिक आंका गया है उसे अधिकतर रचना की बारीकी या काव्यंग्यों के सूक्ष्म विन्यास की निपुणता की ओर ही मुख्यत: दृष्टि रखने वाले पारखियों के पक्ष से समझना चाहिए―उनके पक्षों से समझना चाहिए जो किसी हाथी-दांत के टुकड़े पर महीन बेलबूटे देख घंटे वाह-वाह किया करते हैं। पर जो हृदय के अंत:स्थल पर मार्मिक प्रभाव चाहते हैं, किसी भाव की स्वच्छ निर्मल धारा में कुछ देर अपना मन मगन रखना चाहते हैं उनका संतोष बिहारी से नहीं हो सकता।

FAQ

Q: बिहारी के दोहों का सबसे विश्वसनीय टीका कौन सी है?
A: जगन्नाथ रत्नाकर द्वारा संपादित बिहारी रत्नाकर 

Q: बिहारी के आश्रयदाता कौन हैं?
A: बिहारी राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे 

Q: बिहारी का प्रिय छंद कौन स है?
A: बिहारी का प्रिय छंद दोहा है, इनके बारे मे प्रसिद्ध है कि बिहारी गागर मे सागर भरने की क्षमता रखते थे  

Q: बिहारी की  प्रमुख रचनाओं कौन कौन सी हैं?
A:  बिहारी की एकमात्र रचना "बिहारी सतसई" मिलती है, यही कृति उइनकी सुप्रसिद्धि का कारण है 

Q:  बिहारी का पूरा नाम क्या है?  
 A: बिहारी  का पूरा नाम बिहारीलाल था|

Q: बिहारी के प्रिय अलंकार कौन से हैं?
A: बिहारी के प्रिय अलंकार अतिशयोक्ति, सांगरूपक और अन्योक्ति है 

Q: बिहारी किस तरह की काव्य-रचनाएं करते थे?
A: बिहारी की एकमात्र रचना  बिहारी सतसई मुख्यतः शृंगार, नीति और वीर रस की रचनाओं की वजह से चर्चित है 

Q:
A:

निष्कर्ष:

यह सभी दोहे दिल्ली यूनिवर्सिटी के मास्टर् ऑफ हिंदी डिग्री प्रोग्राम में पाठ्य में लगा हुआ है।  अतः आपको स्पष्ट रूप से यह सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध की जा रही है। बिहारी के बारे में यह सभी जानकारियां प्रामाणिक सन्दर्भो के ली गईं व सतर्कता के साथ अंकित की गई है तथापि मानव स्वभाव के चलते कुछ त्रुटियां को नजरअंदाज करें व इस ब्लॉग को सभी जरूरतमंद के साथ शेयर करें।



  

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