चीन ने 500 मीटर से ऊँची इमारतों पर प्रतिबंध क्यों लगाया?

Siddharth
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चीन, जो अपनी चमकदार गगनचुंबी इमारतों जैसे शंघाई टावर और पिंग एन फाइनेंस सेंटर के लिए जाना जाता है, ने 2020 में 500 मीटर से ऊँची इमारतों के निर्माण पर रोक लगा दी। यह फैसला दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गया, क्योंकि चीन में ऊँची इमारतें न केवल शहरी विकास का प्रतीक हैं, बल्कि आर्थिक ताकत और तकनीकी प्रगति का भी परिचय देती हैं। 


लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि चीन ने इतना बड़ा कदम उठाया? इस ब्लॉग में हम इस प्रतिबंध के पीछे के कारणों, इसके प्रभावों और इससे जुड़ी हर महत्वपूर्ण बात को आसान भाषा में समझेंगे।


Why did China ban taller buildings in 2020?
आखिर चीन ने क्यों बैन किया 500 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाली बिल्डिंगों को बनने से? जानें पूरी बात


प्रतिबंध की शुरुआत और समयरेखा

2020 में, विशेष रूप से मई में, दक्षिणी चीन के शेनज़ेन शहर में एक 356 मीटर ऊँची इमारत, SEG प्लाजा, में अचानक कंपन होने की घटना ने सबका ध्यान खींचा। यह इमारत बिना किसी भूकंप या तेज हवा के हिलने लगी थी, जिसके बाद इसे खाली करवाया गया। जांच में पता चला कि इमारत के शीर्ष पर लगा एक 50 मीटर लंबा मस्तूल हवा के कारण हिल रहा था, जिससे पूरी संरचना में कंपन हुआ। इस घटना ने इमारतों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए।

जुलाई 2021 में, चीन के राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (NDRC), आवास और शहरी-ग्रामीण विकास मंत्रालय, और आपातकालीन प्रबंधन मंत्रालय ने एक संयुक्त बयान जारी किया। इसमें 500 मीटर से ऊँची इमारतों के निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध और 250 मीटर से ऊँची इमारतों के लिए सख्त नियम लागू किए गए। छोटे शहरों (30 लाख से कम आबादी) में 150 मीटर से ऊँची इमारतों पर भी रोक लगाई गई, और विशेष अनुमति के बिना ऐसी इमारतें नहीं बनाई जा सकतीं। यह नीति तुरंत लागू हो गई और पूरे देश में इमारतों के निर्माण की प्रक्रिया पर असर डाला।


प्रतिबंध के पीछे की वजहें क्या हैं आख़िर?

चीन का यह कदम कई कारणों से प्रेरित था, जो न केवल तकनीकी और सुरक्षा से जुड़े थे, बल्कि आर्थिक और सामाजिक पहलुओं को भी छूते थे।

1. सुरक्षा चिंताएँ

शेनज़ेन की घटना ने दिखाया कि ऊँची इमारतें, खासकर 500 मीटर से अधिक ऊँची, कितनी जोखिम भरी हो सकती हैं। ऐसी इमारतों को बनाने में जटिल इंजीनियरिंग की जरूरत होती है, और छोटी सी गलती बड़े हादसों का कारण बन सकती है। चीन में पहले भी कई इमारतों में दरारें, नींव की कमजोरी, या खराब निर्माण सामग्री की शिकायतें सामने आई थीं। सरकार ने यह सुनिश्चित करना चाहा कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों।

2. आर्थिक बुलबुले का डर

चीन में गगनचुंबी इमारतें स्थानीय सरकारों और डेवलपर्स के लिए प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गई थीं। हर शहर अपनी पहचान बनाने के लिए ऊँची से ऊँची इमारत बनाना चाहता था, भले ही उसकी जरूरत न हो। इससे रियल एस्टेट में अंधाधुंध निवेश बढ़ा, जिसने आर्थिक बुलबुले का खतरा पैदा किया। 2020 में एवरग्रांडे जैसे बड़े रियल एस्टेट डेवलपर्स के कर्ज में डूबने की खबरें सामने आईं, जिसने सरकार को यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया। ऊँची इमारतों पर रोक लगाकर सरकार ने अनावश्यक खर्च और आर्थिक अस्थिरता को नियंत्रित करने की कोशिश की।

3. संसाधनों का अनुचित उपयोग

ऊँची इमारतें बनाने में भारी मात्रा में स्टील, कंक्रीट, और अन्य संसाधनों की जरूरत होती है। साथ ही, इनके रखरखाव और ऊर्जा खपत भी बहुत अधिक होती है। छोटे शहरों में, जहाँ आबादी कम है और जमीन की कोई कमी नहीं, ऐसी इमारतें बनाना संसाधनों की बर्बादी माना गया। सरकार ने इस नीति से संसाधनों के बेहतर उपयोग और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा।

4. सौंदर्य और सांस्कृतिक चिंताएँ

चीन की सरकार ने यह भी कहा कि कई डेवलपर्स और स्थानीय योजनाकार इमारतों को "मील का पत्थर" बनाने के चक्कर में अजीबोगरीब डिज़ाइन अपना रहे थे, जो शहरों की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान से मेल नहीं खाते। उदाहरण के लिए, कुछ इमारतें पश्चिमी डिज़ाइनों की नकल थीं, जो चीन की स्थानीय वास्तुकला को प्रभावित कर रही थीं। सरकार ने इसे नियंत्रित करने के लिए ऊँचाई की सीमा तय की।

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कौन प्रभावित हुआ?

यह प्रतिबंध कई पक्षों को प्रभावित करता है:

  • रियल एस्टेट डेवलपर्स: बड़े डेवलपर्स जैसे एवरग्रांडे और वांके को अपनी योजनाएँ बदलनी पड़ीं। कई प्रोजेक्ट्स रद्द हुए या डिज़ाइन में बदलाव करना पड़ा।
  • स्थानीय सरकारें: छोटे शहरों को अब ऊँची इमारतों के जरिए "प्रतिष्ठा" हासिल करने की रणनीति छोड़नी पड़ी। उन्हें टिकाऊ और किफायती प्रोजेक्ट्स पर ध्यान देना होगा।
  • आम लोग: यह प्रतिबंध आम लोगों के लिए सुरक्षित और किफायती आवास सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है, लेकिन कुछ शहरों में प्रॉपर्टी की कीमतें प्रभावित हुईं।
  • वास्तुकार और इंजीनियर: इमारतों की डिज़ाइन और निर्माण प्रक्रिया में अब ज्यादा सख्ती और अनुमति की जरूरत है।

कैसे लागू किया गया?

प्रतिबंध को लागू करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए:

  • निरीक्षण और सर्वे: सभी मौजूदा ऊँची इमारतों की सुरक्षा और निर्माण सामग्री की जाँच के आदेश दिए गए।
  • नए नियम: 30 लाख से कम आबादी वाले शहरों में 150 मीटर और अधिक आबादी वाले शहरों में 250 मीटर से ऊँची इमारतों के लिए विशेष अनुमति अनिवार्य की गई।
  • सजा और जवाबदेही: नियम तोड़ने वाले डेवलपर्स और स्थानीय अधिकारियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया।


लेटेस्ट अपडेट (2025 तक)

2025 तक, इस प्रतिबंध का असर साफ दिखाई दे रहा है। कई शहरों में ऊँची इमारतों के नए प्रोजेक्ट्स रुके हुए हैं, और डेवलपर्स अब मध्यम ऊँचाई (150-250 मीटर) की इमारतों पर ध्यान दे रहे हैं। 2022 में चोंगकिंग में उद्घाटित "डांस ऑफ लाइट" टावर, जो अपनी मुड़ी हुई डिज़ाइन के लिए प्रसिद्ध है, इस बात का उदाहरण है कि डेवलपर्स अब रचनात्मकता को ऊँचाई की बजाय डिज़ाइन में दिखा रहे हैं।

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रतिबंध बड़े शहरों जैसे शंघाई और शेनज़ेन में जगह की कमी की समस्या को बढ़ा सकता है, जहाँ ऊँची इमारतें आबादी के दबाव को कम करने में मदद करती हैं। दूसरी ओर, छोटे शहरों में यह नीति टिकाऊ शहरीकरण को बढ़ावा दे रही है।


भविष्य पर प्रभाव

यह प्रतिबंध चीन के शहरी विकास को नए दिशा दे रहा है। डेवलपर्स अब हरे-भरे, पर्यावरण-अनुकूल और मध्यम ऊँचाई के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं। साथ ही, सरकार ने स्मार्ट सिटी और टिकाऊ निर्माण पर जोर देना शुरू किया है। यह नीति न केवल चीन के लिए, बल्कि दुनिया भर के उन देशों के लिए भी एक सबक है जो बिना सोचे-समझे गगनचुंबी इमारतों का निर्माण कर रहे हैं।

निष्कर्ष

चीन का 500 मीटर से ऊँची इमारतों पर प्रतिबंध एक सोचा-समझा कदम है, जो सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता, और टिकाऊ विकास को प्राथमिकता देता है। शेनज़ेन की घटना ने सरकार को यह कदम उठाने के लिए प्रेरित किया, और इसके पीछे सुरक्षा, संसाधनों का सही उपयोग, और सांस्कृतिक पहचान को बचाने की मंशा थी। 


यह नीति न केवल चीन के शहरी परिदृश्य को बदल रही है, बल्कि दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि विकास और सुरक्षा के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।


अगर आप इस बारे में और जानना चाहते हैं या अपनी राय साझा करना चाहते हैं, तो नीचे कमेंट करें! क्या आपको लगता है कि भारत को भी ऐसी नीतियाँ अपनानी चाहिए?

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